अक्षरातीत = अक्षर से अलग, परब्रह्म, पुरुषोत्तम, उत्तमपुरुष परमसत्य । उनही को श्रीराजजी और श्री कृष्णजी कहा है । वे सच्चिदानन्द स्वरूप हैं । उनके सद-अंश से अक्षर, चिद अंश से वे खुद तथा आनंद अंश से श्रीश्यामाजी, ब्रह्मात्माएँ और परमधाम प्रगट हुए हैं । वे परमधाममें श्रीश्यामाजी तथा ब्रह्मांगनाओ के साथ नित्य विहार करते हैं । उनकी इस लीला को ब्रह्मीलीला कहा गया है । वे अपनी ब्रह्मीलीला को जगत में भी अवतरित करते हैं । जिसे श्रीप्राणनाथजी ने व्रज, रास और जागनी के रूप में माना है । “इन तीनों में ब्रह्मलीला भई, व्रज, रास और जागनी कही” ।
Aksharateet = Different from Akshar, Parbrahm, Purushottam, Uttam Purush (Supreme Being) Supreme Truth. Aksharateet is only known as Shri Rajji & Shri Krishna ji. He is Sacchidanand swaroop (Truth, consciousness & Bliss). From His Sat/Sad part Akshar, from Chit part He Himself & from Anand part Shri Shyamaji, Brahmatmas and Paramdhaam appeared (emerged). In Paramdhaam He, Shri Shyamaji & the Brahmatmas promenade daily. This leela is known as Brahmileela. He also reveals (manifests) his Brahmmileela in this world. Shri Prannathji has accepted them in the form of Braj / Vraj, Raas & Jagni. “In these there is Brahmileela, they are known as Vraj, Raas & Jagni leela.”
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